Analysis
मराठा निर्णय के तीन विचारों का बंटवारा : लंबाई, संरचना और शैली
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5 मई 2021 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान बेंच ने मराठा आरक्षण के लिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2018 को गैर – संवैधानिक करार कर दिया। चार राय दी गई। इनमें से जस्टिस हेमंत गुप्ता का 1 पेज के 2 पैराग्राफ में सबसे छोटा है। यह केवल आरक्षण पर 50% की अधिकतम सीमा पर अन्य समान रूप से दी गयी राय के साथ सहमति व्यक्त करता है। और 102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 की व्याख्या पर जस्टिस भट्ट और जस्टिस राव से सहमत हैं।
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नीचे, हम जस्टिस अशोक भूषण (स्वयं और जस्टिस अब्दुल नजीर), जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस रविंद्र भट्ट द्वारा दिए गए निर्णय की शैली और संरचना की तुलना करते हैं।
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लंबाई और दायरा
जस्टिस भूषण ने 408 पेजों में 446 अनुच्छेदों में सबसे लंबी राय लिखी। इसकी अनुमानित शब्द संख्या 74,000 है। हालांकि, यह भी एकमात्र राय है जो सभी मुद्दों पर विचार करती है।
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जस्टिस राव ने जस्टिस भूषण के साथ 50% की सीमा और जस्टिस भट्ट के साथ 102वें संशोधन पर सहमति व्यक्त की। उनकी राय 22 पृष्ठों में 26 अनुच्छेदों तक चलती है, जिसमें फुटनोट सहित लगभग 4,500 शब्द हैं। उन्होंने केवल 102वें संशोधन की व्याख्या पर अतिरिक्त तर्क दिए हैं, खास तौर पर व्याख्या के ‘बाहरी सहायता’’ के उपयोग के संदर्भ में।
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जस्टिस भट्ट की राय 131 पृष्ठों में 189 पैरा में दूसरी सबसे लंबी है। इसमें फुटनोट या सन्दर्भों सहित लगभग 45,000 शब्द हैं। उनकी राय सभी मुद्दों को संबोधित करती है सिवाय इसके कि क्या गायकवाड आयोग ने आरक्षण पर 50% की सीमा को भंग करने का औचित्य प्रदान किया था?
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सन्दर्भ
हालांकि उनकी राय छोटी थी, जस्टिस नागेश्वर राव ने 42 मामलों, 3 पुस्तकों और 2 लेखों को संदर्भित किया है।
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जस्टिस भूषण की राय में केस लॉ, कानून और संसदीय रिकॉर्ड का व्यापक सन्दर्भ है। उनकी राय एकमात्र राय है जिसमें सन्दर्भ लाइन में ही हैं। इसलिए, जबकि हम मामलों की सटीक संख्या निर्धारित करने में असमर्थ थे, उन्होंने अपनी राय में केवल 2 अकादमिक स्रोतों को संदर्भित किया: जिसमे उद्देश्यपूर्ण व्याख्या पर एक पुस्तक और ब्लैक लॉ कानूनी शब्दकोश है ।
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जस्टिस भट्ट ने 76 मामलों, 4 पुस्तकों और 7 लेखों का हवाला दिया है। उन्होंने सरकारी आंकड़ों के लिए 13 स्रोतों का भी इस्तेमाल किया है।
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चलते – फिरते की गयी टिप्पणियां
जस्टिस भट्ट ने आरक्षण के मुद्दे से परे सकारात्मक प्रयासों के रूप पर 19 पेज लिखे हैं। वह पहले से लागू की गई विभिन्न योजनाओं के सकारात्मक कार्रवाई और आंकड़ों के तुलनात्मक ढांचे को देखता है।
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वह कुछ सिफारिशें भी करते है। यह ‘इतरोक्ति’(ऐसी बातें जो निर्णय का हिस्सा नहीं है ) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये ऐसी टिप्पणियां हैं जो बाध्यकारी या ऑपरेटिव नहीं हैं। जस्टिस भूषण की राय में भी सकारात्मक प्रयासों के वैकल्पिक साधनों की सिफारिश करने वाली एक जैसी टिप्पणियां शामिल हैं, लेकिन केवल एक पैराग्राफ के लिए [¶ 170]
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संरचना और शैली
जस्टिस भूषण ने अपने फैसले की शुरुआत में बेंच द्वारा तैयार किए गए 6 सवालों को रखा। हालांकि, उन्होंने उन सवालों के जवाब देने के लिए एक अलग 16-भाग के संरचना को चुना। इन भागों में से एक ने सभी मुद्दों पर पार्टियों के प्रस्तुतीकरण को एक साथ नोट किया। जस्टिस भट्ट ने अपनी संरचना के आधार के रूप में 6 प्रश्नों का इस्तेमाल किया। उन्होंने पार्टियों के प्रस्तुतीकरण पर ध्यान दिया और उन्हें अपने विश्लेषण के भीतर संबोधित किया।
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जस्टिस भूषण और जस्टिस राव के फैसले मुख्य रूप से कानूनी शब्दावली पर निर्भर थे। जस्टिस भट्ट एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने एक साहित्यिक संकेत शामिल किया: रवींद्रनाथ टैगोर के ‘जहां मन निडर हो’ । उन्होंने फ्रैंकलिन रूजवेल्ट को भी संदर्भित किया। जबकि जस्टिस भूषण ने अनुच्छेद 14 न्यायशास्त्र की भाषा के तहत 50% की सीमा को ‘उचित संतुलन’ करार दिया, जस्टिस भट्ट ने लोकप्रिय पश्चिमी परी कथा का जिक्र करते हुए ‘गोल्डीलॉक्स समाधान’ का वाक्यांश अपनाया।
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This Piece is translated by Priya Jain & Rajesh Ranjan from Constitution Connect.